राष्ट्र कवि दिनकर जी के एक पंक्ति स अपन बात के प्रारम्भ करब :-
जिनको निज जाती , निज भाषा देश पर अभिमान नहीं
वो नर नहीं नीरा पशु है, मुर्दा है , बेजान है !!
इ कथन सत्य लगैत आछी जखन कोनो मैथिल के दोसर मैथिल के साथ तेरे को मेरे को करैत देखाई छी ! एही तरहक बात के हम कोण रुपे ली , कि हम विकशित होयत एही दुनिया में कही ज्यादे आगू निकलै गेनौ ? या हम सब अपन माटी पाइन स दूर भेनौ त ओकरा विसर गेनौ ?
हम अपन विभूति , अपन धरोहर , अपन संस्कृति , अपन खान - पान , सब स दूर भेल जा रहल छी !
आबे वाला पीढ़ी जखन पूछत हमर मिथिला के पहचान की आछी , ओ सवाल क सकैत आछी, ओ मांगी सकैत आछी ,
"विद्यापति के आँगन के जाकर छलाह जे , उगना के भेष में महेश चाही हमरा, यो पापा राजा जनक सन नरेश चाही हमरा "
तखन लागत जे हम कहाँ स कहाँ चैल एनओ ! हे मैथिल , चेतु अखनो समय आछी ! नाइ पूरा त आधो नाइ आधो त कणियो समय अपन मिथिला के लेल निकालूँ !
एही तरहक सोच और विचार के साथ "मैथिल सेवा संस्थान " के नीव राखल गेल आछी !
सोशल मिडिया के असंख्य तारा में स किछु मैथिल धुर्व तारा के दुआरा एकर स्थापना कैल गेल आछी , जकर मुख्य उदेश्य मैथिल और मिथिला के सेवा करब आछी ! एक दिन एही पेलेटफॉर्म (सोशल मिडिया) पर एक मैथिल के असहाय देखनौ ओहि दिन हम सब गोटे एक प्रण केनौ जे हम सब आगा बढ़ी एही स लड़ब और कोनो भी असहाय मैथिल नै रहैथ ओकर प्रयाश हमर संस्था करत , संस्था ओहि तरहक हर एक मैथिल सहायता करत ओ आर्थिक रुपे , शारीरिक रुपे या सामाजिक रुपे किुया नै होय, संस्था हरेक प्रकार स सहायता के लेल सदेव तत्पर रहत !
जखन कोनो मैथिल के असहाय देखि छी त सच पूछी त बड़ दुःख होयत आछी , जे मिथिला के एतेक यशस्वी संतान के रहितो किछु दिन संतान के दुःख दूर नै क सकैत छैथ ?
एक टा मित्र कहला , हे यो मोन त हमरो होयत अछि मुदा एहन कोनो संस्था नाइ भेटल जकड़ काज एहन तरहक होय सब के दिखाई छी राजनीती स प्रेरित ओहि लक मोन नाइ करैत आछी !
हम हुनका मैथिल सेवा संस्था के बारे के कहनौ त हुनकर जबाब छल आब निक भेल जे हमर खोज पूरा भेल और हुनक मोन प्रसन भ गेलैन एमएसएस के काज के बारे में सुनी क और हमर मोन सेहो प्रसन भेल हुनक प्रशान्ता देखिक !
बस अंत में एकैह बात कहे चाहब " आऊ हाथ स हाथ मिलाऊ - मैथिलक दुःख दूर भगाऊ "
जय मिथिला
धन्यवाद
दुर्गानाथ झा
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